तेरी कैद से मै युही रिहा नही हो रहा - तहज़ीब हाफ़ी

तेरी कैद से मै युही रिहा नही हो रहा,
मेरी जिंदगी तेरा हक़ अदा नही हो रहा,

मेरा मौसमो से तो फिर गिला ही फिजूल है,
तुझे छू कर भी अगर मैं हरा नही हो रहा,

तेरे जीते जागते कोई मेरे दिल में है,
मेरे दोस्त क्या ये बहुत बुरा नहीं हो रहा ,

ये जो डगमगाने लगी है तेरे दिए की लो,
इसे मुझसे तो कोई मसला नहीं हो रहा

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लेखक :  तहज़ीब हाफ़ी

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