रेत सा मन लिये स्वप्न के द्वार हम - अमन अक्षर
रेत सा मन लिये स्वप्न के द्वार हम
एक नदी का पता पूछकर आ गये
एक भरम सोंपकर तुम चले तो गये
वो भरम जिन्दगी भर निभाना तो हैं
ज़िस कहानी में हम तुम कहीं भी न थे
उस कहानी को अपना बताना तो है
हम तुम्हे ढूँढते आप ही खो गये
हम तुम्हारा नगर छोड़कर आ गये
स्वर्ग को चाहना फिर तुम्हे सोचना
क्या है बेहतर यही हम कहीं सोचते
स्वर्ग मिल जाएगा इतने काविल तो हैं
तुम ही मिल जाओगे हम नहीं सोचते
आस होना अलग पास होना अलग
सोचकर हम अलग राह पर आ गये
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अमन अक्षर
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