हर एक चेहरे को ज़ख्मों का आईना न कहो - राहत इन्दौरी


हर एक चेहरे को ज़ख्मों का आईना न कहो
ये ज़िन्दगी तो है रहमत इसे सज़ा न कहो

न जाने कौन सी मजबूरियों का कैदी हो
वो साथ छोड़ गया है तो बेवफा न कहो

तमाम शहर ने नैज़ों पे क्यों उछाला मुझे
ये इत्तेफाक था तुम इसको हादसा न कहो

ये और बात के दुश्मन हुआ है आज मगर
वो मेरा दोस्त था कल तक, उसे बुरा न कहो

हमारे ऐब हमें उंगलियों पे गिनवो
हमारी पीठ के पीछे हमें बुरा न कहो

मैं वाकियात की ज़ंज़ीर का नहीं कायल
मुझे भी अपने गुनाहों का सिलसिला न कहो

ये शहर वो है जहां राक्षस भी है "राहत"
हर एक तराशे हुए बुत को देवता न कहो

- राहत इन्दौरी

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