मुझ को दयार-ए-ग़ैर में मारा वतन से दूर - मिर्ज़ा ग़ालिब



मुझ को दयार-ए-ग़ैर में मारा वतन से दूर 
रख ली मिरे ख़ुदा ने मिरी बेकसी की शर्म 

वह हल्क़ा-हा-ए-ज़ुल्फ़ कमीं में हैं या ख़ुदा 
रख लीजो मेरे दावा-ए-वारस्तगी की शर्म

मिर्ज़ा ग़ालिब

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