शाम होने को है - सोज़ / जावेद अख़्तर / जगजीत सिंह
शाम होने को है,
लाल सूरज समंदर में खोने को है
और उसके परे कुछ परिंदे
कतारें बनाए
उन्हीं जंगलों को चले
जिनके पेड़ों की शाखों पे हैं घोंसले
ये परिंदे वहीं लौटकर जाएंगे
और सो जाएंगे
हम ही हैरान हैं
इस मकानों के जंगल में
अपना कोई भी ठिकाना नहीं
शाम होने को है हम कहाँ जाएंगे
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एल्बम : सोज़
लेखक : जावेद अख़्तर
गायक : जगजीत सिंह
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