तुम बैठे हो लेकिन जाते देख रहा हूँ - सोज़ / जावेद अख़्तर / जगजीत सिंह
तुम बैठे हो लेकिन जाते देख रहा हूँ,
मैं तन्हाई के दिन आते देख रहा हूँ,
आने वाले लम्हे से दिल सहमा है,
तुमको भी डरते घबराते देख रहा हूँ,
कब यादों का ज़ख्म भरे कब दाग मिटे,
कितने दिन लगते हैं भुलाते देख रहा हूँ,
उसकी आँखों में भी काजल फैला है,
मैं भी मुड़ के जाते-जाते देख रहा हूँ.
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एल्बम : सोज़
लेखक : जावेद अख़्तर
गायक : जगजीत सिंह
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