ख़ुदा हमको ऐसी ख़ुदाई न दे, के अपने सिवा कुछ दिखाई न दे - बशीर बद्र
ख़ुदा हमको ऐसी ख़ुदाई न दे
के अपने सिवा कुछ दिखाई न दे
ख़तावार समझेगी दुनिया तुझे
अब इतनी भी ज्यादा सफ़ाई न दे
(ख़तावार = अपराधी, दोषी)
हँसो आज इतना कि इस शोर में
सदा सिसकियोँ की सुनाई न दे
(सदा = आवाज़)
अभी तो बदन में लहू है बहुत
क़लम छीन ले, रोशनाई न दे
(रोशनाई = स्याही)
मुझे अपनी चादर से यूँ ढाँप लो
ज़मीँ आसमाँ कुछ दिखाई न दे
ग़ुलामी को बरकत समझने लगें
असीरोँ को ऐसी रिहाई न दे
(बरकत = लाभ, फायदा, कृपा), (असीर = बंदी, क़ैदी)
मुझे ऐसी जन्नत नहीं चाहिए
जहाँ से मदीना दिखाई न दे
मैं अश्कों से नाम-ए-मुहम्मद लिखूँ
क़लम छीन ले रौशनाई न दे
ख़ुदा ऐसे इरफ़ान का नाम है
रहे सामने और दिखाई न दे
(इरफ़ान = बुद्धि, विवेक, ज्ञान)
बशीर बद्र
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