उसे बचाए कोई कैसे टूट जाने से,वो दिल जो बाज़ ना आए फरेब खाने से - इक़बाल अशर
"उसे बचाए कोई कैसे टूट जाने से,
"वो दिल जो बाज़ ना आए फरेब खाने से,
"वो शख्स एक ही लम्हे मैं टूट फूट गया
"जिसे तराश रहा था मैं एक ज़माने से
"पड़ा है वक़्त तो लगता है सहमा-सहमा सा,
"वो एक चिराग जो बुझता ना था बुझाने से,
"रुकी-रुकी सी नज़र आ रही है नब्ज़-ए-हयात,
"यह कौन उठ के गया है मेरे सिरहाने से,
"नज़ाने कितने चिरागो को मिल गई शोहरत ,
"एक आफताब के बेवक़्त डूब जाने से,
"उदास छोड गये वो हर एक मौसम को,
"गुलाब खिलते थे कल जिसके मुस्कुराने से...!!
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