अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो जान थोड़ी है, ये सब धुआँ है कोई आसमान थोड़ी है - डॉ. राहत इन्दौरी
अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो जान थोड़ी है
ये सब धुआँ है कोई आसमान थोड़ी है
यहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है
हमारी तरह हथेली पे जान थोड़ी है
हमारे मुँह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है
जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे
किराएदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी है
डॉ. राहत इन्दौरी
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