आप से मिलके हम कुछ बदल से गए, शेर पढ़ने लगे, गुनगुनाने लगे - नुसरत फ़तेह अली खान



आप से मिलके हम कुछ बदल से गए, 
शेर पढ़ने लगे, गुनगुनाने लगे
पहले मशहूर थी, अपनी संजीदगी
अब तो जब देखिए मुस्‍कुराने लगे 


हमको लोगों से मिलने का कब शौक था, 
महफिलाराई का कब हमें जौक था
आपके वास्ते हमने ये भी किया,
मिलने जुलने लगे, आने जाने लगे



हमने जब आपकी देखी दिलचस्पियां, 
आ गईं चंद हममें भी तब्दीलियां
इक मुसव्विर से भी हो रही दोस्ती, 
और गज़लें भी सुनने सुनाने लगे



आप के बारे में पूछ बैठा कोई, 
क्या कहें हमसे क्या बदहवासी हुई
कहनेवालीं जो थी बातें वो ना कहीं,
बात जो थी छुपानी बताने लगे



इश्क बेघर करे इश्क बेदर करे,
इश्क का सच है कोई ठिकाना नहीं
हम जो कल तक ठिकाने के थे आदमी,
आपसे मिलके कैसे ठिकाने लगे

नुसरत फ़तेह अली खान

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