सोचता हूँ की वो कितने मासूम थे - नुसरत फ़तेह अली खान


जाने वाले हमारी महफ़िल से 
चाँद तारों को साथ लेता जा 
हम ख़िज़ाँ से निबाह कर लेंगे 
तू बहारों को साथ लेता जा 

---------------------------------------

सोचता हूँ की वो कितने मासूम थे...
क्या से क्या हो गए देखते देखते...

मैंने पत्थर से जिनको बनाया सनम....
वो खुदा हो गए देखते देखते...

हश्र है वह्सहते दिल की आवारगी....
हमसे पूछो दिल की दीवानगी..
वो पता पूछते थे किसी का कभी....
लापता हो गए देखते देखते...

हमसे ये सोच कर कोई वादा करो...
एक वादे पे उमरें गुजर जायेंगी...
ये है दुनिया यहाँ कितने अहले-वफ़ा...
बेवफा हो गए देखते देखते...

दिन छुप गया सूरज का कहीं नाम नहीं है...
वादा शिकन अब तेरी अभी शाम नहीं है...
कल से बेकल हूँ जरा सा मुझे कल आये...
रोज का इंतज़ार कौन करे...
आपका इंतज़ार कौन करे...

गेर की बात तस्लीम क्या कीजिये...
अब तो ख़ुद पे भी हमको भरोसा नहीं...
अपना साया समझते थे जिनको...
वो जुदा हो गए देखते देखते...

नुसरत फ़तेह अली खान

Comments