कितनी पी कैसे कटी रात मुझे होश नहीं - डॉ. राहत इन्दौरी
दिन ढला तो रात गुज़रने की आस में..
सूरज नदी में डूब गया, और हम गिलास में .
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कितनी पी कैसे कटी रात मुझे होश नहीं,
रात के साथ गई बात मुझे होश नहीं
मुझको ये भी नहीं मालूम कि जाना है कहॉं
थाम ले कोई मेरा हाथ मुझे होश नहीं
ऑंसूओं और शराबों में गुजारी है हयात
मैं ने कब देखी थी बरसात मुझे होश नहीं
जाने क्या टूटा हे पैमाना कि दिल है मेरा
विखरे-विखरे है खयालात मुझे होश नहीं
- डॉ. राहत इन्दौरी
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