यही रात अंतिम .. यही रात भारी - रामायण / रविन्द्र जैन / रामानंद सागर

यही रात अंतिम .. यही रात भारी
बस एक रात की अब कहानी है सारी ..

नहीं बन्धु बांधव न कोई सहायक
अकेला है लंका में लंका का नायक ..
सभी रत्न बहुमूल्य रण में गंवाए
दशानन इसी सोच में जागता है
लगे घाव ऐसे की भर भी न पाए ..

ये बाज़ी अभी तक न जीती ना हारी
कि जो हो रहा उसका परिणाम क्या है ..
कि मानव के जीवन में संघर्ष कितना ..
यही रात अंतिम .. यही रात भारी ..

हो भगवान मानव तो समझेगा इतना
बहुत हो चुकि युद्ध में व्यर्थ हानि
विजय अंततः धर्म वीरों की होती
पर इतना सहज भी नहीं है ये मोती ..

यही रात अंतिम .. यही रात भारी ..
पहुँच जाये परिणाम तक अब ये कहानी ..
वचन पूर्ण हो देवता हों सुखारी
भला धर्मं से पाप कब तक लड़ेगा
समर में सदा एक ही पक्ष जीता
जयी होगी मंदोदरी या कि सीता ..
कोई एक ही कल सुहागन रहेगी ..
किसी मांग से उसकी लाली मिटेगी
ये सीता के धीरज कि अंतिम कड़ी है ..
या झुकना पड़ेगा या मिटना पड़ेगा ..
विचारों में मंदोदरी है बेचारी
यही रात अंतिम .. यही रात भारी ..

ये एक रात मानो युगों से बड़ी है
यही रात अंतिम .. यही रात भारी ..

प्रतीक्षा का विष और कितना पिएगी
बिना प्राण के देह कैसे जियेगी ..
दिखाओ दरस अब न इतना रुलाओ ..

कहे राम रोम अब तो राम आ भी जाओ
कि रो रो के मर जाए सीता तुम्हारी

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धारावाहिक : रामानंद सागर कृत रामायण 
चैनल : दूरदर्शन 
लेखक / गायक / संगीत : रविंद्र जैन जी 

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