जन जन के प्रिय राम लखन सिया वन को जाते हैं - रविन्द्र जैन / रामानंद सागर / रामायण

विधना तेरे लेख किसी की, समझ न आते हैं।
जन जन के प्रिय राम लखन सिया वन को जाते हैं ....

एक राजा के राज दुलारे, वन वन फिरते मारे मारे।
होनी होकर रहे कर्म गति, टरे नहीं काहूँ के टारे।।
सबके कष्ट मिटाने वाले, कष्ट उठाते हैं।
जन जन के प्रिय राम लखन सिया, वन को जाते हैं।
जन जन के प्रिय राम लखन सिया ....

फूलों से चरणों में काँटे, विधि ने क्यों दुख दीन्हे ऐसे।
पग से बहे लहु की धारा, हरि चरणों से गंगा जैसे ।
सहज भाव से संकट सहते, और मुस्काते हैं।
जन जन प्रिय राम लखन सिया, वन को जाते हैं।।
जन जन के प्रिय राम लखन सिया ....

पत्ता पत्ता तिनका तिनका, जोड़ते जाते हैं।
महलों के वासी जंगल में, कुटि बनाते हैं।।
महलों के वासी जंगल में....

राजमहल में पाया जीवन, फूलों में लालन पालन।
राजमहल के त्याग सभी सुख, त्याग अयोध्या त्याग सिंहासन।।
कर्म निष्ठ हो अपना अपना, धर्म निभाते हैं।
महलों के वासी जंगल में, कुटि बनाते हैं।।
महलों के वासी जंगल में.....

कहते हैं देवों ने आकर, भील किरात का रूप बनाकर।
पर्णकुटी रहने को प्रभु के, रखदी हाथों हाथ सजाकर।।
सिया राम की सेवा करके, सब पुण्य कमाते हैं।
महलों के वासी जंगल में, कुटि बनाते हैं।।
महलों के वासी जंगल में ..

दर दर भटके पूछते फिरते, प्राण प्रिया वन में खोकर।
रावण मारकर सीता लाये, पत्नी छोड़ी राजा होकर।।
मानव को दुख सह सहकर, जीवन आदर्श सिखाते हैं।
जन जन के प्रिय राम लखन सिया, वन को जाते हैं।।
जन जन के प्रिय राम लखन सिया ....

विधना तेरे लेख किसी की, समझ न आते हैं।

~ ~ ~

धारावाहिक : रामानंद सागर कृत रामायण 
चैनल : दूरदर्शन 
लेखक / गायक / संगीत : रविंद्र जैन जी 

Comments