मांग की सिंदूर रेखा - डॉ. कुमार विश्‍वास

मांग की सिंदूर रेखा, तुमसे ये पूछेगी कल,
यूँ मुझे सर पर सजाने का तुम्हे अधिकार क्या है ,
तुम कहोगी वो समर्पण बचपना था तो कहेगी, 
गर वो सब कुछ बचपना था, तो कहो फिर प्यार क्या है …..

मांग की सिंदूर रेखा .....

कल कोई अल्हड अयाना, बांवरा झोका पवन का,
जब तुम्हारे इंगितो पर, गंध भर देगा चमन में,
या कोई चंदा धरा का, रूप का मारा बेचारा,
कल्पना के तार से, नक्षत्र जड़ देगा गगन पर..

तब यही बिछुए महावर चूड़ियाँ गजरे कहेंगे,
इस अमर सौभाग्य के श्रृंगार का आधार क्या है ..

मांग की सिन्दूर रेखा … 

कल कोई दिनकर विजय का, सेहरा सर पर सजाये ,
जब तुम्हारी शप्तबरणी, छावं में सोने चलेगा ,
या कोई हरा थका व्याकुल सिपाही जब तुम्हारे ,
वक्ष पर धर सीश लेकर हिचकियाँ रोने चलेगा ,

तब किसी तन पर कसी दो बांह जुड़ कर पूछ लेगी,
इस प्रणय जीवन समर में जीत क्या है हार क्या है …

मांग की सिन्दूर रेखा .....

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डॉ. कुमार विश्‍वास

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