जो आता है वो जाता है - डॉ. कुमार विश्‍वास


जो आता है वो जाता है
जो आता है वो जाता है
तू किसका शोक मनाता है
उस सूर्य-जयी, उस दिशा-पुरुष
से  प्रहर चार रस सने बाद
छिन जाते सारे तारे पर
अम्बर कब शोक मनाता है
जो आता है वो जाता है
जो आता है वो जाता है

इच्छ्वाकु वंश, भारत प्रमाण
अज, रघु, दिलिप, पुरुरवा प्राण
अज, रघु, दशरथ, पुरुरवा प्राण
जिस अजिर-बिहारे रामचन्द्र
लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न संग
उर्वशियों की इच्छित समाधि
संरक्षण मांगे तनय गाधि
जिनके धनु की टंकार प्रबल
सुन कर कंपता था रावण-दल
वे जनक-सुता के चिर स्वामी
संतों के बहु-विध हितकामी
समरसता के वे विजय-केतु
साक्षी है अब तक है राम-सेतु
संतों पर नहीं सिरा जिनका
सागर पर नाम तिरा जिनका
सरयू के जल में ले समाधि
वह किसकी थाह लगाता है ?
जो आता है वो जाता है
जो आता है वो जाता है
तू किसका शोक मनाता है
जो आता है वो जाता है

दो माताओं के एक पूत
वात्सल्य भाव के अग्रदूत
जिनकी शिशुता अब तक प्रमेय
हर गोदी में, हर गेह-गेह
माखन-चोरी, दधि दान, रास
जिनसे परिभाषित रस-विलास
वे अमर प्रेम के यश गायक
वृषभानु कुमारी के नायक
रुक्मिणी के पति, कौन्तेय मित्र
वे महासमर के चिर-चरित्र
ब्रह्माण्ड दिखे जो मुँह खोलें
उपनिषद् सार गीता बोलें
यदुकुल की अथ-इति के प्रतीक
जिनकी वरेण्य है कृष्ण लीक
क्यों एक व्याध के तीरों में
वंशी का स्वर खो जाता है
जो आता है वो जाता है
जो आता है वो जाता है
तू किसका शोक मनाता है
जो आता है वो जाता है

यशदेह रही जीवित भू पर
हर भीम-भंयकर चला गया
सुकरात-अरस्तू बचे रहे
सम्राट सिकंदर चला गया
वंशी की तानें अमर हुईं
पर पाँचजन्य स्वर चला गया
चाणक्य अभी तक प्रासंगिक
पर शिष्य धुरंधर चला गया
अरिहंत-बुद्ध गृहत्यागी थे
पर धरा और अम्बर में हैं
रानी-महारानी चिह्न-शेष
मरतना माँ सबके स्वर में है
ना महल बचे प्रासाद बचे
पर भगत और आज़ाद बचे
बाबर-अकबर मिट जाते है
कबिरा फिर भी रह जाता है
जो आता है वो जाता है
जो आता है वो जाता है
तू किसका शोक मनाता है 
जो आता है वो जाता है

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डॉ. कुमार विश्‍वास

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