अर्थ सहित रहीम के दोहे (बड़प्‍पन के विषय मेें) - रहीम



बडे़ बड़ाई ना करे बड़े न बोले बोल
रहिमन हीरा कब कहै लाख टका है मोल।
बड़े लोग अपनी बड़ाई स्वयं कभी नहीं करते। वे बढ चढ कर कभी नही बोलते हैं। हीरा स्वयं कभी अपने मुॅह से नही कहता कि उसका मूल्य लाख रूपया है ।

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कहु रहीम केतिक रही केतिक गई विहाय
माया ममता मोह परि अंत चले पछिताय ।
अब कितना जीबन बचा है और कितना हमने नस्ट कर दिया इस पर विचार करें । माया ममता और मोह में पड़कर अंततः हमें मृत्यु के समय पछताना पड़ता है ।

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जो बडेन को लघु कहे नहि रहीम घटि जाहि
गिरिधर मुरलीधर कहे कछु दुख मानत नाहि ।
किसी बड़े को छोटा कहने से वह छोटा नही हो जाता। गिरिधर कृष्‍ण को मुरलीधर कहने से उनका महत्व कम नही हो जाता है। बड़ा सर्वदा बड़ा हीं रहता है ।

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धन थोडो इज्जत बडी कह रहीम की बात
जैसे कुल की कुलवधू चिथरन माहि समान।
धन की अपेक्षा प्रतिष्‍ठा का महत्व अधिक है। खानदानी कुलबधु अगर फटे चिथड़़ा़ेें में भी रहती है तो वह अपनी इज्जत और मर्यादा से अपने कुल की प्रतिश्ठा को बढा देती हैं।

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होय न जाकी छाॅह ढिग फल रहीम अति दूर
बढिहू सो बिन काज की तैसे तार खजूर ।
तार और खजूर के बृक्ष न छाया देते हैं और न हीं उनके फल आसानी से तोड़े जा
सकते हैं कयोंकि उनके फल बहुत दूर होते हैं। उनके बहुत बढने और उॅचाई से किसी को लाभ नहीं होता। ऐसी उच्चता ब्यर्थ है।

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साधु सरा है साधुता जति जोखिता जान
रहिमन साॅचै सूर को बैरी करे बखान ।
साधु दूसरों की साधुता का और योगी लोग ध्यान समाधि की बड़ाई करते हैं लेकिन अच्छे वीरों की प्रशंसा उनके दुश्मन भी वर्णन करते हैं। 

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रहिमन मेाहि न सुहाय अमी पियावत मान विनु
वरू विश देय बुलाय मान सहित मरिबो भलेा।
यदि अपमान करके कोई अमृत पिलावे तो वह रहीम को स्वीकार नही है। इससे तो इज्जत के साथ जहर पी कर मरना हीं वह अच्छा मानते हैं।

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रहि मांगत बडेन की लघुता होत अनूप
बलि मरब मांगन को गये धरि बाबन को रूप ।
मांगने के समय बड़े लोगो की लघुता भी सुन्दर लगती है। जब भगवान बलि के पास बौना बामन रूप ले कर मांगने गये तो उनका रूप तेज अत्यंत सुन्दर था। छोटे काम करने में भी बड़े लोगों का महत्व कम नही होता ।

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रहिमन विद्या बुद्धि नहि नही धरम जस दान
भू पर जनम वृथा धरै पशु बिन पूॅछ विशान ।
यदि ब्यक्ति के पास विद्या बुद्धि धर्म यश दानशीलता का गुण नही है तो उसका धरती पर जन्म लेना ब्यर्थ है।वह पूंछ सींग के बिना पशु समान है। यदि मानवीय गुण नही है तो यह जीवन बेकार है।

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जैसी जाकी बुद्धि है तैैैैसी कहे बनाय
ताको बुरा न मानिये लेन कहाॅ सो जाय ।
जिसकी जैसी बुद्धि होती है-उसी मुताबिक वह बातें करता है। हमें बुरी बुद्धि बालों की बातों का बुरा नही मानना चाहिये-वे कहाॅ से बुद्धि लायेंगें। नासमझ लोगों पर दया करनी चाहिये ।

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छिमा बडेन को चाहिये छोटेन को अपराध
का रहीम हरि को घटयो जो भृगु मारी लात ।
बड़े लोगों का क्षमाशील होना चाहिये। छोटे लोग तो गल्ती करते हीं हैं। म‍हर्षि भृगु ने भगवान को पैर से छाती पर मारा तो उल्टे भगवान ने उन्हें कहा कि आपको चोट तो नही लगी। इससे भगवान का बड़प्पन और बढ गया ।

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लोहे की न लुहार की रहिमन कही विचार
जो हनि मारै सीस में ताही की तलवार ।
बिचारने की बात है कि तलवार न तो लोहे की है और न हीें लोहार की। जो दुश्मन के सिर का हनन कर सकता है-वस्तुतः तलवार उसी की कही जायेगी। वस्तुतः किसी वस्तु के प्रयोग का महत्व होता है-वस्तु का नही ।

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रहिमन यह तन सूप है लीजै जगत पछोर
हलुकन को उडि जान दै गरूक राखि बटोर ।
यह संसार अन्न का भंडार और शरीर एक सूप के समान है जो हल्की चीजों को उड़ा
देता है और भारी वस्तुओं को बटोर कर रख लेता है। महत्वहीन वस्तुओं और विचारों को उड़ जाने दो और महत्वपूर्ण तथ्यों का संग्रह करो ।

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यों रहीम सुख दुख सहत बडे लोग सह सांति
उदत चंद चोहि भांति सों अथवत ताहि भांति ।
बड़े लोग जीवन में सुख और दुख को अत्यंत शांति और धीरज से सहन करते हैं। चन्द्रमा जिस प्रकार उगता है उसी प्रकार से अस्त भी हो जाता है। उत्थान और पतन को महान लोग समान भाव से ग्रहण करते है।

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रहिमन कबहुॅ बडेन के नाहिं गरब को लेस
भार धरे संसार को तउ कहावत सेस ।
महान लोगों में घमंड अहंकार नाम मात्र भी नही होता। शेषनाग सम्पूर्ण पृथ्वी का भार अपने फन पर उठाये हुये हैं पर ‘शेष’ नाममात्र; नगण्य कहलाते हैं।

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रहिमन रिस सहि तजत नहि बडे प्रीति की पौरि
मूकन मारत आबई नींद बिचारी दैारि ।
अधिक प्रेमी ब्यक्ति का क्रोध सहकर भी हम उन्हें नही त्यागते हैं। नींद को लाख भगाने पर भी वह चली आती है-हमें छोड़कर नही जाती हैं ।

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कैसे निबहै निबल जन करि सबलन सों गैर
रहिमन बस सागर बिशे करत मगर सों बैर ।
कमजोर ब्यक्ति को ताकतबर से शत्रुता नही रखनी चाहिये। समुद्र में रहकर मगर घरियाल से दुशमनी रखना उचित नही है।तब आपकी हार अबश्य होगी।

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छोटेन सों सोहैं बड़े कहि रहीम यह लेख
सहसन को हय बॅाधियत लै दमरी की मेख ।
छोटे लोग या छोटी बातों को कभी कम मत समझो। कभी छोटे लोग भी बहुत बड़ा काम कर जाते हैं।बहुत कीमती घेाड़ा को भी साधारण खूटों से हीं बॅाध कर रखा जाता है।

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जो मरजाद चली सदा सोई तो ठहराय
जो जल उमगें तार तें सो रहीम बहि जाय ।
ब्यक्ति को परम्परा से चली आ रही मर्यादाओं के मुताबिक हीं चलना चाहिये। जो जल या नदी अपनी सीमा में बहती है-वह कल्याणकारी है परंतु जो अपनी सीमा को तोड़कर बहती है वह लोगों को बहा ले जाती है और नुकसान करती है।

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पसरि पत्र झंपहि पिटहिं सकुचि देत ससि सीत
कछु रहीम कुल कमल के को बैरी को मीत ।
गरमी में तालाब का पानी गरम न हो-अतः कमल का पत्ता फैलकर पानी को ढक लेता है और रात में पानी को चंद्रमा की शीतलता देने के लिये सिकुर जाता है। यदि कमल की तरह पुत्र हो तो उसे किसी से शत्रुता या मित्रता का कोई अर्थ नही है।

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परि रहिबो मरिबो भलो सहिबो कठिन कलेस
बामन ह्वै बलि को छल्यो दियो भलो उपदेस ।
जीवन मृत्यु के बीच उलझ कर अत्यधिक कश्अ सहकर भले मृत्यु हो जाये पर किसी को छलो- ठगो मत।विश्नु ने वामन रूप लेकर बलि के साथ छल किया।यदि तुम भी किसी के साथ छल करोगे तो अपनी हीं नजर में वामन-छोटा हो जाओगे।

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जे रहीम बिधि बड़ किए को कहि दूसन काढि
चंद्र दूबरो कूबरो तउ नखत ते बाढि ।
जिसे इश्वर ने हीं बड़ा बनाया है उसमें कोई कैसे दोश निकाल सकता है। दूज का चाॅद महीन रेखा की भॅाति पतला होता है-फिर भी सब उसकी पूजा करते हैं। उसकी कमी भी उसका गुण बन जाता है।

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रहिमन मांगत बड़ेन की लघुता होत अनूप
बलि मरब मांगन को गये धरि बाबन को रूप ।
बड़े लोगों के मसंगने पर भी उनका छोटापन नही होता। विष्‍णु बौना बनकर राजा बलि से दान मांगने गये तो उनका सम्मान तेज प्रभाव कम नही हो गया।

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दीरघ दोहा अरथ के आखर थोरे आहि
ज्यों रहीम नट कुंडली सिमिटि कूदि चढि जाहि ।
दोहा शब्द में कम होता है किंतु उसका अर्थ अत्यधिक गंभीर होता हैं। अतः दोहा को छोटा समझना भयंकर भूल होगी। नट को छोटे से कुंडल से निकलने के लिये अपने शरीर को सिमट कर उसके अन्दर प्रवेश करना पड़ता है।दोहा या आदमी उसके छोटे आकार को देखकर उसके ब्यक्तित्व का मूल्यांकन नही करना चाहिये।

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बड़े बड़ाई नहि तजै लघु रहीम इतराई
राइ करौंदा होत है कटहर होत न राइ ।
बड़े लोग अपना बड़प्पन कभी नही छोड़ते हैं लेकिन छोटे लोग हमेशा अपने घमंड में इतराते रहते हैं। करौंदा शुरू में राई के जैसा छोटा होता है पर कटहल कभी भी राई जैसा छोटा नही होता। 

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उगत जाहि किरन सों अथवत ताही कांति
त्यों रहीम सुख दुख सबै बढत एक हीं भांति ।
सूर्य जिस प्रकार आभा युक्त किरराों से उगता है उसी प्रकार की कांति प्रकाश लेकर अस्त भी होता है। सुख दुख बृद्धि और ह्र्रास में भी वीर पुरूश समान धीरज और बुद्धि से कार्यशील रहते हैं।

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रजपूती चाॅवर भरी जो कदाच घटि जाय
कै रहीम मरिबो भलो कै स्वदेश तजि जाय ।
राजपूत स्वाभिमानी होता है।यदि कभी उसके राजपाट छिन जाने पर उसकी प्रतिश्ठा में कमी आती है तो वह मरना अच्छा मानता है अथवा वह अपना देश छेाड़कर कहीं अन्यत्र चला जाता हैं।

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मान सरोवर हीं मिलै हंसनि मुक्ता भोग
सफरिन भरे रहीम सर बक बालक नहिं जोग ।
हंस मानसरोवर मे हीं मिलते हैं । उनको वहाॅ मोती चुगने का आनन्द मिलता है। मछली से भरा तालाब बगुला और बच्चों के लायक होते हैं।निम्न श्रेणी के लोग विशय भोगों में फॅसे रहते हैं और अच्छे स्वभाव के लोग अच्छे कार्यों में लगे रहते हैं।

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कौन बड़ाई जलधि मिलि गंग नाम भो धीम
काकी महिमा नहिं घटी पर घर गये रहीम ।
बिना बुलाये दूसरे के घर जाने से प्रतिश्ठा कम हो जाती है। गंगा समुद्र से जाकर मिल गई तो गंगा का नामो निशान अस्तित्व खत्म हो गया।बिना आमंत्रण दूसरे के यहाॅ जाने से दुखी होना पड़ता है।

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अंड न बौड़ रहीम कहि देखि सचिककन पान
हस्ती ढक्का कुल्हड़िन सहै ते तरूवर आन ।
छोटे लोग अपने अल्प संपत्ति पर हीं घमंड करने लगते हैं।अरंडी के पौधे में कुछ चिकने पत्ते देखकर हीं वह गर्व करने लगा।लेकिन वह एक छोटा जंगली पौधा है। लेकिन अनेक फलदार छायादार बृक्षों की तुलना में उसकी हस्ती कुछ भी नही है।

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अरज गरज मानै नहीं रहिमन ये जन चारि
रिनियाॅ राजा मांगता काम आतुरी नारि ।
ऋराा कर्जलकने बाला आदी ब्यक्ति; अपनी आज्ञा मनवाने की लत बाला राजा; भिखारी
जिसे भीख मांगने की आदत पड़ गई हो और कामेक्षा में आतुर स्त्री-ये चारों किसी की आरजू या बात नही मानते हैं।इनकी बुद्धि खो जाती है और ये अपनी बात मनवाने हेतु उतावला हो जाते हैं।

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गुरूता फबै रहीम कहि फबि आई है जाहि
उर पर कुच नीके लगै अनत बतौरी आहि ।
बड़े लोगों का बड़प्पन फबता-सुन्दर लगता है। जिसका बड़प्पन हमेशा से सबों को अच्छा लगता रहा है। यह स्थान एवं ब्यक्ति विशेश की सुन्दरता है। उरोज का उभार हृदय पर हीं अच्छा लगता है। दूसरी जगह यह उभार बीमारी मानी जायेगी ।

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रहीम

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