अर्थ सहित रसखान के दोहे (कृष्‍ण छवि) - रसखान



देख्यो रुप अपार मोहन सुन्दर स्याम को
वह ब्रज राजकुमार हिय जिय नैननि में बस्यो।
रसखान ने जबसे मोहन के अपार सुन्दर श्याम रुप को देखा है-
उस ब्रज के राजकुमार ने उनके हृदय मन मिजाज जी जान तथा आंखों में निवास बना कर बस गये हैं।

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अरी अनोखी बाम तूं आई गौने नई
बाहर धरसि न पाम है छलिया तुव ताक में।
अरी अनुपम सुन्दरी तुम नयी नवेली गौना द्विरागमन कराकर ब्रज में आई हो-
तुम्हें मोहन का चाल ढाल मालूम नही है। यदि तुम घर के बाहर पैर रखी तो समझ लो-वह छलिया तुम्हारी ताक में लगा हुआ है, पता नहीं कब वह तुम्हें अपने प्रेम जाल में फांस लेगा।

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प्रीतम नंद किशोर जा दिन तें नैननि लग्यौ
मन पावन चितचोर प़त्रक ओट नहि सहि सकौं।
जबसे प्रियतम श्रीकृष्ण से आंखें मिली है-मेरा मन परम पवित्र हो गया है। अब तो उस चितचोर को वृक्षों पत्तों की ओट में भी मन बर्दास्त नही करता है। अब मोहन कृष्ण को प्रत्यक्ष सम्पूर्ण रुप से देखने के लिये मन ब्याकुल रहता है।

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या छवि पै रसखान अब वारौं कोटि मनोज
जाकी उपमा कविन नहि पाई रहे कहुं खोज।
रसखान कहते हैं कि उस सुंदर मनोहर रुप पर करोंड़ों कामदेव न्योछावर हैं
जिसकी उपमा तुलना कवि लोग कहीं भी ढूंढ खोज नहीं पा रहे हैं। कृष्ण के रुप सौन्दर्य की तुलना करना संभव नही है।

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जोहन नंद कुमार को गई नंद के गेह
मोहि देखि मुसिकाई के बरस्यो मेह सनेह।
रसखान नंद कुमार श्रीकृष्ण को देखने नंद के घर गये थे। 
वहां मनमोहन कृष्ण उन्हें देखकर इस प्रकार मुस्कुराये जैसे लगा कि स्नेह प्रेम की वर्षा होने लगी। 
श्याम का स्नेह रस उमड घुमड कर बरसने लगा।

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ए सजनी लोनो लला लह्यो नंद के गेह
चितयो मृदु मुसिकाइ के हरी सबै सुधि गेह।
हे प्रिय सजनी श्याम लला के दर्शन का विशेष लाभ है।
जब हम नंद के घर जाते हैं तो वे हमें मधुर मुसकान से देखते हैं और हम सब की सुधबुध हर लेते हैं।

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मोहन छवि रसखानि लखि अब दृग अपने नाहिं
उंचे आबत धनुस से छूटे सर से जाहिं।
रसखान कहते हैं कि मदन मोहन कृष्ण की सुंदर रुप छटा देखने के बाद अब ये आँखें मेरी नही रह गई हैं
जिस तरह धनुश से छूटने के बाद बाण अपना नही रह जाता है।तीर वापिस नही होता है।

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मन लीनो प्यारे चितै पै छटांक नहि देत
यहै कहा पाटी पढी दल को पीछो लेत।
प्रियतम श्रीकृष्ण ने रसखान का मन ले लिया है लेकिन वे बदले में एक छटांक तनिक
भी नही दिये हैं।उन्होंने यही पाठ शिक्षा पढी है कि पहले अपना सर्वस्व दो तब मुझसे कुछ मिलेगा।

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मो मन मानिक लै गयो चितै चोर नंदनंद
अब बेमन मैं क्या करुं परी फेर के फंद।
मेरे मन का माणिक्य रत्न तो चित्त को चुराने बाले नन्द के नंदन श्री कृष्ण ने चोरी कर लिया है।
अब बिना मन के रसखान क्या करें। वे तो भाग्य के फंदे में-फेरे में पर गये हैं। अब तो बिना समर्पण कोई उपाय नही रह गया है।

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प्रीतम नन्द किशोर जा दिन ते नैननि लग्यौ
मन भावन चित चोर पलक औट नहि सहि सकौं।
प्रियतम नंद किशोर से जिस दिन से आंखें मिली हैं उसी दिन से मनमोहन कृष्ण से एकक्षण का वियोग भीनहीं सहन कर पा रहे हैं। मैं उन्हें अपने मन मस्तिष्‍क से अलग नहीं कर पा रहा हूं।

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बंक बिलोचन हंसनि मुरि मधुर बैन रसखानि
मिले रसिक रसराज दोउ हरखि हिये रसखानि।
तिरछी नजरों से देखकर मुस्कुराते एवं मीठी बोली बोलने बाले मनमोहन कृष्ण को देखकर रसखान का हृदय आनन्दित हो जाता है।
जब रसिक और रसराज कृष्ण मिलते हैं तो हृदय में आनन्द का प्रवाह होने लगता है।

धुरि भरे अति सोहत स्याम जू, तैसी बनी सिर सुंदर चोटी।
खेलत खात फिरैं अँगना, पग पैंजनी बाजति, पीरी कछोटी॥
वा छबि को रसखान बिलोकत, वारत काम कला निधि कोटी।
काग के भाग बड़े सजनी, हरि हाथ सों लै गयो माखन रोटी॥
श्याम जी धूल से भरे हुए खेल रहे हैं, और सिर पर सुंदर चोटी बंधी हुई है। आंगन में इधर-उधर खेलने पर उनके पैरों में बंधी हुई पायल बज उठती है। कृष्ण ने पीले रंग की कछौटी (कच्छा ) पहनी हुई है। रसखान कहते हें कि कृष्ण के इस रूप को देख कर करोड़ों कामदेव और करोड़ो चंद्रमा वारे जा सकते हैं। इसके बाद बड़ी सुंदर घटना का वर्णन एक पंक्ति में किया गया है, कि कृष्ण माखन रोटी खा रहे थे, उसे कौवा छीन ले गया, उसका भाग्य कितना बड़ा है कि वह हरि के हाथ से माखन रोटी लेकर गया है।।

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काह कहूं रतियां की कथा बतियां कहि आबत है न कछू री
आइ गोपाल लियो करि अंक कियो मन कायो दियौ रसबूरी।
रात की बात क्या कही जाये। कोई बात कहने में नही आती है।
श्रीकृष्ण आकर मुझे अपने गोद में भर लिया और मेरे साथ खूब मनमानी करने लगे।मेरे मन एवं शरीर में आनन्द से रस का सराबोर हो गया।

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प्रेम अपनि श्रीराधिका प्रेम बरन नंदनंद
प्रेम बाटिका के दोउ माली मालिन द्वन्द्व।
श्रीराधिका जी प्रेम के घर प्रेम के भंडार हैं तथा नंदनन्दन श्री मोहन कृष्ण उस प्रेम की मदिरा हैं जो दोनों को प्रेम में मदोन्मत्त कर दिये हैं। इस प्रेम रुपी वाटिका फुलवारी के मानों दोनों माली मालिन हैं जिनमें परस्पर अधिकाधिक प्रेम का युद्ध है कि कौन कितना किसे प्रेम करता है।

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लोक वेद मरजाद सब लाज काज सन्देह
देत बहाए प्रेम करि विधि निश्ध को नेह।
संसार ज्ञान बुद्वि मर्यादा लोक लज्जा क्रियाकर्म एवं पारस्परिक सन्देह इत्यादि सब भौतिक कल्मशों को प्रेम बहा देता है एवं प्रेम नेह की समस्त बंधनों को तोड देता है।

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कबहुं न जा पथ भ्रम-तिमिर रहै सदा सुखचंद
दिन दिन हीं बाढत रहै होत कबहुं नहि मंद।
प्रेम के पथ में कभी भी पारस्परिक संदेह रुपी अंधकार नही होता है और प्रेमी सर्वदा सुख से ओतप्रोत रहता है।
उनका आपसी प्रेम दिनानुदिन बढता हीं रहता है तथा उनके प्रेम में कभी कमी नही आती हैै।

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राधा माधव सखिन संग बिहरत कुंज कुटीर
रसिक राज रसखानि जहं कूजत कोइल कीर।
माधव श्रीकृष्ण एवं राधाजी सखियों के संग बृंदावन की झाडियों जंगलों में विहार करते हैं।
इस दृश्य को देखकर रसखान अपूर्व माधुर्य का रसपान कर रहे हैं जहां कोयल भी इन्हें देखकर कूक रहा है।

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जेहि बिनु जाने कछुहि नहि जान्यो जात विशेष
सोइ प्रेम जेहि जानि कै रहि न जात कछु शेष।
जिसने प्रेम नही जाना-उसने संसार में कुछ भी नही जाना। जिसने प्रेम के स्वरुप को जान लिया 
उसके लिये संसार में अन्य कुछ जानने के लिये सेश नही बच जाता है।
प्रेम के बिना संसार में जीवन ब्यर्थ है। प्रेम हीं जीवन का मूल सार्थक तत्व है।

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अकथ कहानी प्रेम की जानत लैली खूब
दो तनहुं जहं एक भे मन मिलाई महबूब।
प्रेम की कहानी कहना संभव नही। इसे प्रेमी प्रेमिका हीं जानते समझते हैं।
जब प्रभु प्रेमी प्रेमिका का मन मिला देते हैं तो दो शरीर एक हो जाता है।
उनमें किसी प्रकार की द्विविधा एवं द्वैत भाव नही रह जाता है।

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रसखान

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