अर्थ सहित रहीम के दोहे (समय के संबंध में) - रहीम

धन दारा अरू सुतन सों लग्यों है नित चित्त
नहि रहीम कोउ लरवयो गाढे दिन को मित्त ।
अपने धन यौवन और संतान में हीं नित्य अपने मन को नही लगा कर रखें। जरूरत पड़ने पर इनमें से कोइ नही दिखाई देगा । केवल इश्वर पर मन लगाओ । संकट के समय वही काम देगा ।

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रहिमन तब लगि ठहरिये दान मान सम्मान
घटत मान देखिये जबहि तुरतहि करिये पयान ।
किसी जगह तभी तक रूकैं जब तक आपकी इज्जत और सेवा हो । जब आपको अनुभव हो कि आपके आदर में कमी हो रही है तो तत्काल वहाॅ से प्रस्थान कर जायें।

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अब रहीम मुसकिल परी गाढे दोउ काम
सांचे से तो जग नहीं झूठे मिलै न राम ।
रहीम कठिनाई में है ।सच्चाई पर दुनिया में काम चलाना अति कठिन है और झूठा बन कर रहने से प्रभु की प्राप्ति असंभव है।भैातिकता और अध्यात्म दोनो साथ साथ निर्वाह नहीं हो सकता ।

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जो रहीम गति दीप की कुल कपूत गति सोय
बारे उजियारे लगै बढे अंधेरो होय ।
दीपक और कुपुत्र की हालत एक होती है। दीप जलने पर उजाला कर देता है और पुत्र जन्म पर आशा से आनन्द फैल जाता है ।परन्तु दीप बुझ जाने पर अंधकार हो जाता है और कपूत के बड़ा होने पर घर को निराशा के अन्धकार में डुबा देता है ।

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बिगडी बात बने नहीं लाख करो किन कोय
रहिमन विगरै दूध को मथे न माखन होय ।
बिगड़ी हुई बात लाख प्रयत्न करने पर भी नहीं बनती सुधरती है। बिगड़े फटे दूध को कितना भी मथा जाये उससे मक्खन नहीं निकलता है। सोच समझ कर बात कहनी चाहिये ।

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विपति भये धन ना रहै रहै जो लाख करोर
नभ तारे छिपि जात हैं ज्यों रहीम ये भोर ।
विपत्ति आने पर धन सम्पत्ति भी चली जाती है भले वह लाखों करोड़ों में कयांे न हो जैसे सवेरा होते हीं समस्त तारे छिप जाते हैं ।

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मांगे मुकरि न को गयो केहि न त्यागियो साथ
मांगत आगे सुख लहयो ते रहीम रघुनाथ ।
मंागने पर सब मुकर जाते हैं और कोई नहीं देते। सब साथ भी छोड़ देते हैं। मांगने बालों से प्रसन्न रहने बाले एकमात्र भगवान राम हीं-ऐसो को उदार जग माहिं!

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यह रहीम निज संग लै जनमत जगत न कोय
बैर प्रीति अभ्यास जस होत होत हीं होय ।
दुशमनी प्रेम प्रयास एवं प्रतिष्‍ठा धीरे धीरे हीं प्राप्त होता है। इन्हें कोई जन्म से अपने साथ लेकर नहीं आता है। इनका क्रमिक विकास होता है ।

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रहिमन देखि बडेन को लघु न दीजिये डारि
जहाॅ काम आबै सुई कहा करै तलवारि ।
बड़ों को देखकर छोटों की उपेक्षा-अनदेखी न करें। जहाॅ सुई से काम होने वाला है वहाॅ तलवार कया कर सकता हैै।

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समय पाय फल होत है समय पाय झरि जात
सदा रहै नहि एक सी का रहीम पछितात ।
बृक्ष पर समय पर फल लगता है और अपने समय पर पुनः गिर जाता है। समय हमेशा एक जैसा नही रहता ।अतः पछतावा करना व्‍यर्थ है । काल का चक्र गतिमान है।

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समय परे ओछे वचन सबके सहै रहीम
सभा दुसाशन पट गहै गदा लिये रहे भीम ।
वीर पुरूष को भी खराब समय पर निकृष्‍ट बोल सहना पड़ता है। सभा में दुःशासन जब द्रौपदी का चीर हरण कर रहा था तो भीम गदा लेकर भी चुपचाप रहे। समय पर जीवन के लिये ब्यूह रचना करनी पड़ती है।

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समय लाभ सम लाभ नहि समय चूक सम चूक
चतुरन चित रहिमन लगी समय चूक की हूक ।
समय से लाभ उठाओ। समय को खोने से अत्यधिक हानि है। चतुर ब्यक्ति से भी चूक हो जाती है और उसका दर्द उन्हें सालता रहता र्है। अतःसमय को जीतना आबश्यक है।

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सर सूखै पंछी उड़ै औरे सरन समाहि
दीन मीन बिन पंख के कहु रहीम कह जाहि ।
तालाब के सूखने पर पक्षी उड़ कर दूसरे तालाब की शरण में चले जाते हैं।गरीब मछली बिना पंख के कहाॅ जा पाती है। ईश्वर ने उसे असमर्थ बना दिया है-परन्तु वह ईश्वर की शरण में यहीं रहती है। वही मछली का एकमात्र भरोसा है।

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समय दसा कुल देखि कै सबै करत सनमान
रहिमन दीन अनाथ को तुम बिन को भगबान ।
जिनकासमय हालत और कुल खानदान अच्छा है उसकी सब इज्जत करते हैं। लेकिन गरीब और अनाथ का भगवान के सिवा कोई नहीं होता है।

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पावस देखि रहीम मन कोइल साधै मौन
अब दादुर बक्ता भये हमको पूछत कौन ।
पावस ऋतु देखकर कोयल चुप हो गया। अब दादुर बोलने लगा। प्रतिकूल समय को धीरज से बिताना चाहिये और समय का इंतजार करना चाहिये। बिना बिचारे मत बोलो।

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रहिमन कठिन चितान ते चिंता को चित चेत
चिता दहति निर्जीव को चिंता जीव समेत ।
चिंता चिता से अधिक खराब है। चिंता करने से ब्यक्ति को बचना चाहिये। चिता तो मरे ब्यक्ति को जलाती है पर चिंता जीवित ब्यक्ति को भी मार डालती है।

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दोनों रहिमन एक से जौं लों बोलत नाहि
जान परत हैं काक पिक ऋतु बसंत के माॅहि।
कौआ और कोयल दोनों काले एक जैसे देखने में होते है। जब तक वे बोलते नही हैं-पता करना कठिन है। लेकिन बसंत ऋतु में कोयल की कूक और कौआ का काॅव काॅव करने पर उनका भेद खुल जाता है। बाहरी रूप रंग से ब्यक्ति की पहचान कठिन है पर भीतरी आवाज से सबों का असलियत पता चल जाता है।

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रहिमन चुप ह्वै बैठिये देखि दिनन को फेर
जब नीकै दिन आइहैं बनत न लगिहैं बेर ।
संकट के समय धीरज से चुप रह कर बुरे समय का फेर समझ कर जीना चाहिये।
अच्छा समय आने पर झटपट सब ठीक हो जाता है और सब काम सफल हो जाता है। अतः धीरज से समय बदलने का इंतजार करना चाहिये ।

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रहिमन पानी राखिये बिनु पानी सब सून
पानी गये ना उबरै मोती मानुश चून ।
अपनी इज्जत बचा कर रखें। बिना इज्जत के जीवन व्‍यर्थ है। पानी की कमी से मोती की चमक और चूना का रंग फीका हो जाता है।

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रहिमन विपदा हू भली जो थोडे दिन होय
हित अनहित या जगत में जानि परत सब कोय ।
अल्प समय की विपत्ति ठीक है। इससे अपना पराया लाभ हानि दोस्त दुश्मन की पहचान हो जाती है। इसे परीक्षा की घड़ी समझना चाहिये।

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कमला थिर न रहीम कहि यह जानत सब कोय
पुरूश पुरातन की वधू कयों न चंचला होय ।
रहीम कहते हैं कि लक्ष्मी कहीं स्थिर नहीं रहती-यह सब कोई जानते हैं। लक्ष्मी आदि पुराण पुरूष विष्‍णु की वधु है। इसी से वह चंचला है। फिरभी लोग लक्ष्मी के मोह में परे रहते हैं।

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सबै कहाबै लसकरी सब लसकर कहॅ जाय
रहिमन सेल्ह जोई सहै सो जागीरे खाय ।
सेना के सभी लोग सैनिक कहे जाते हैं। सभी मिलकर हीं लड़ाई करते हैं परन्तु जो सैनिक तमाम कष्‍टों को सह कर राजा को विजय दिलाते हैं उन्हीं की इज्जत होती है और इनाम जागीर दी जाती है।

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सीत हरत तम हरत नित भुवन भरत नहिं चूक
रहिमन तेहि रवि को कहा जो घटि लखै उलूक ।
सूर्य ठंढक मिटा कर अंधकार दूर कर देते हैं। वे दिन रात अपने काम में लगे रहते हैं।यदि रात में विचरण करते हुये उल्लू सूर्य की बुराई करे तो इसमें सूर्य का कुछ नही बिगड़ता है।

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भावी काहू ना दही दही एक भगवान
भावी ऐसा प्रवल हैे कहि रहीम यह जान।
हेानी से केाई नही बच सकता। इसने इश्वर को भी नही छोड़ा है। भावी बहुत प्रवल होता है-इसे कोई नही बदल सकता है।

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बडे दीन को दुख सुने लेत दया उर आनि
हरि हाथी सों कब हुती कहु रहीम पहिचानि।
बड़े लोगों को दीन दुखियों का दुख सुनकर तुरंत हृदय में दया आ जाती है। हाथी से भगवान को कया पहचान थी-किंतु वे तुरंत दौड पड़े । महान लोगों की यह विशेषता है।

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जो रहीम भावी कतहुॅ होति आपने हाथ
राम न जाते हरिन संग सीय न रावराा साथ ।
यदि भविश्य जानना अपने वश में होता तो राम हरिण के पीछे नही जाते और सीता का रावण द्वारा हरण नही होता। होनी को कोई नही टाल सकता है।

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ससि सुकेस साहस सलिल मान सनेह रहीम ।
बढत बढत बढि जात है घटत घटत घटि सीम ।
चाॅद सुन्दर बाल साहस जल प्रतिश्ठा और स्नेह धीरे धीरे बढ जाता है और धीरे धीरे कम भी हो जाता है। इन्हें बढाने की कोशिश करनी चाहिये लेकिन घमंड होने से इनमें क्रमशः कमी आने लगती हैं।

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होत कृपा जो बडेन की सो कदापि घट जाय
तो रहीम मरिबो भलो यह दुख सहो न जाय ।
यदि कभी बड़ों की कृपा दया प्रेम किसी पर से खत्म हो जाये तो इससे मरना हीं अच्छा है कयोंकि यह दुख सहन नही होता और जीवन नरक तुल्य हो जाता है।

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रहिमन कुटिल कुठार ज्यों करि डारत द्वै टूक
चतुरन को कसकत रहे समय चूक की हूक ।
तेज धार की कुल्हाड़ी जिस प्रकार लकड़ी को दो टुकड़ा कर देता है, उसी तरह समझदार व्‍यक्ति को समय का लाभ नही उठाने-वूक जाने का दर्द-कसक पैदा करता रहता है। चतुर ब्यक्ति का हृदय विदीर्ण हो जाता हैं।

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रहिमन तीन प्रकार ते हित अनहित पहिचानि
पर बस परे परोस बस परे मामिला जानि ।
जब ब्यक्ति दूसरों पर आश्रित हो गया हो; जब कोई हितैसी पड़ोस में बस गया हो और जब कोई मुकदमा में फॅस गया हो और इन परिस्थितियों में कोई सहायता करे तो उसे सच्चा हितैसी मानना चाहिये।

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रहिमन निज संपत्ति बिन कोउ न विपति सहाय
बिनु पानी ज्यों जलज को नहि रवि सकै बचाय
अपनी संपत्ति नही रहने पर विपत्ति में कोई भी सहायता नही करता है। जैसे पानी नही रहने पर कमल को सूरज भी नही बचा सकता है। आपका सामथ्र्य देख कर हीं लोग मदद करते हैं।

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चिंता बुद्धि परखिये टोटे परख त्रियाहि
सगे कुबेला परखिये ठाकुर गुनो कियाहि ।
बुद्धि की परीक्षा चिंता होने पर और पत्नी की परीक्षा आर्थिक तंगी के समय होती है।
सगे संबंधियों की परीक्षा दुर्दिन के समय और मालिक स्वामी की परीक्षा कश्अ के समय की जाती है।

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रहिमन जग जीवन बडे काहू न देखे नैन
जाय दसानन अछत ही कपि लागे गथ लैन ।
इस संसार में किसी की महानता हमेशा नही रहती है। रावण को भी अपनी हार देखनी पड़ी और राम के बन्दरों ने पूरी लंका को लूट लिया। जीवन में प्रतिष्‍ठा और प्रताप क्षणभंगुर होता है।

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कहु रहीम कैसे बनै अनहोनी ह्वै जाय
मिला रहै अैा ना मिलै तासो कहा बसाय ।
जब समय ठीक नही रहता है तो कुछ भी ठीक नही रह पाता है। बात बनते बनते बिगड़ जाती है। अनहोनी हो जाती है। नही होने बाली बात भी हो जाती है।लगता है कि इच्छित बस्तु मिल जायेगी-लेकिन वह नही मिलती है।

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रहिमन भेशज के किए काल जीति जो जात
बडे बडे समरथ भये तौ न कोउ मरि जात ।
अनेक दवा उपचार करने पर भी मृत्यु पर किसी ने विजय नही पाई । संसार में अनेक प्रतापी सामर्थवान लोग हुये पर वे सभी मर गये। काल को जीतने के लिये यश प्राप्त करो ।

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पाॅच रूप पान्डव भये रथ वाहक नलराज
दुरदिन परे रहीम कहि बड़े किए घटि काज ।
अज्ञातवास के समय पाॅचो पाण्डवों को पाॅच रूप धरना पड़ा था और राजा नल को रथ हाॅकने का काम करना पड़ा था।बुरे समय में बड़े लोगों को भी छोटे काम करना पड़ता है । कठिनाई के समय धीरज से काम लेना पड़ता है।

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करमहीन रहिमन लखो धसो बड़े घर चोर
चिंतत को बड़ लाभ के जगत ह्वैगो भेार ।
कर्महीन लोग स्वप्न में एक बड़े घर में चोरी से बहुत धन पर हाथ साफ करता है पर भोर होने पर स्वप्न टूटने पर उसकी सारी खुशी गायब हो जाती है। कर्म से ही फल मिलता है-हाथ पर हाथ रखकर बैठने वाला हाथ मलते रह जाता है।

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काज परे कछु और है काज सरे कछु और
रहिमन भॅवरी के भए नदी सिरावत मौर ।
काम पढ़ने पर लोग आपकी खुशामद करते हं और काम निकल जाने पर लोग आपकी तरफ देखते भी नही हैं।शादी के समय दुल्हा मौर को अपने सिर पर रखता है और शादी के बाद उसे नदी में बहा देता है।आज लोगों का यही चरित्र हो गया है।

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चारा प्यारा जगत में छाला हित कर लेइ
ज्यों रहीम आंटा लगे त्यों मृदंग सुर देइ ।
संसार में भोजन सबको प्रिय लगता है और सब इसे प्रेम से खाते हैं जैसे मृदंग-ढोल पर आटा मलने से वह सुन्दर सुर में बजने लगता है। भूख आदमी से कुछ भी करा सकता है।

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जो पुरूशारथ ते कहूॅ संपति मिलत रहीम
पेट लागि बैराट घर तपत रसोई भीम ।
पुरूशार्थ से हीं धन संपत्ति मिलती है।लेकिन कभी कभी लोग भाग्य के समक्ष विवश
हो जाता है।परम पुरूशार्थी भीम को भी राजा विराट के यहाॅ रसोईया का काम करना पड़ा था।

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जो रहीम रहिबो चहो कहो वही को दाउ
जेा रहीम वासर निशि कहे तो कचपची दिखाउ।
यदि आप तरक्की करना चाहते हैं तो जैसा आपका मालिक कहे वैसा हीं करें ।यदि राजा दिन को रात कहे तो आप तुरंत उसे आकाश में तारे दिखा दें।

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निज कर क्रिया रहीम कहि सिधि भावी के हाथ
पाॅसे अपने हाथ में दाॅव न अपने हाथ ।
कर्म करना हीं मात्र अपने हाथ में है। कर्म की सिद्धि भाग्य के हाथ में है। जुए के खेल में केवल पाॅसा फेंकना अपने वश में है-उसका दाव-परिणाम अपने नियंत्रण में नही होता है। यह सब प्रभु की इच्छा के अनुसार होता है।

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आबत काज रहीम कहि गाढे बंधु सनेह
जीरन होत न पेड़ ज्यों थामें बरै बरेह ।
दुख के समय अपने प्रिय भाई बंधु स्नेही हीं काम आते हैं। बरगद के बृक्ष को कोई गिराने लगता है तो उसके सजातीय बृक्ष हीं उसे गिरने से रोक लेते हैं और वह पुनः बढने फलने लगता है।

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गगन चढै फरक्यो फिरै रहिमन बहरी बाज
फेरि आई बंधन परै अधम पेट के काज ।
बाज शिकार का पीछा करने के लिये उंचे आकाश में उड़ता फिरता है। मालिक के बुलाने पर भी नही आता मानो बहरा हो गया हो। लेकिन भूख लगने पर पेट के खातिर वह स्वयं मालिक के कैद में आ जाता है। पेट की आग सबों को आकाश से धरती पर पटक देती है।

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थोथे बादर क्वार के ज्योंरहीम घहरात
धनी पुरूश निर्धन भये करे पाछिली बात ।
क्वार महीने का बादल जलहीन होता है परन्तु ब्यर्थ हीं गरजता रहता है। इसी तरह कोई धनी आदमी जब गरीब हो जाता है तो वह केवल अपने धन संबंधी पुरानी बातों को बघारता है।

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भलो भयो घर से छुट्यो हस्यो सीस परिखेत
काके काके नवत हम अपत पेट के हेत ।
अच्छा हुआ कि युद्ध में वीर का सिर कट कर भूमि पर गिरा अन्यथा न जाने पापी पेट के खातिर किस किस के आगे सिर झुकाना पड़ता। प्रतिश्ठित लोग याचना की अपेक्षा मृत्यु को अच्छा मानते हैं।

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महि नभ सर पंजर कियो रहिमन बल अवसेश
सो अर्जुन बैराट घर रहे नारि के भेस ।
खांडव जंगल में बसाने हेतु आग लगाई गई तो इन्द्र्र ने घनघेार वर्शा शुरू कर दी। तब अर्जुन ने तीरों से आकाश को ढक कर वर्शा का प्रभाव हीन कर दिया। उसी बीर अर्जुनको बिराट के घर स्त्री के वेश में रहना पड़ा। इसे हीं भाग्य का खेल कहते हैं।

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भीत गिरे पाखान की अररानी वहि ठाम
अब रहीम धोखो यहै को लागै केहि काम ।
किले का एक दिवाल ढह गया। पता नही अब कौन सा पथ्थ्र कब कहाॅ लगेगा। संभव है नीव का नीव का पथ्थ्र शिखर में और शिखर का पथ्थ्र नीव में लगा दिया जाये। समय का कया भरोसा। राजा रंक और रंक राजा बन जाता है।

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ज्यों नाचत कठपूतरी करम नचावत गात
अपने हाथ रहीम ज्यों नहीं आपने हाथ ।
जिस तरह कठपुतली दूसरे के इशारे पर नाचती है उसी तरह मनुश्य के कर्म उसके शरीर को नचाते हैं। लोगों के हाथ पैर उसके नियंत्रराा में नही हैं।सब इश्वर के हाथ में है।

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जेहि अंचल दीपक दुरयो हन्यो सो ताही गात
रहिमन असमय के परे मित्र शत्रु ह्वै जात ।
दीपक को बुझने से बचने हेतु गृहिणी आंचल से ढककर उसे घर में रखती है। सोने के समय उसी आॅचल से उसे बुझा देती है। यह समय का फेर है। बुरे समय पर मित्र भी शत्रु बन जाते हैं।

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दुरदिन परे रहीम कहि दुरथल जैयत भागि
ठाढे हूजत घूर पर जब घर लागति आगि ।
दुर्दिन के समय जहाॅ प्राण बचे वहाॅ भाग जाना चाहिये।जब घर में आग लग जाती है, तो हम गंदगी के ढेर पर जाकर खड़े हो जाते हैं। अचानक संकट से बचने के लिये कुछ भी करना उचित होता है।

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रहिमन अब वे बिरिछ कहॅ जिनकी छाॅह गंभीर
बागन बिच बिच देखियत सेहुड़ कंज करीर ।
अब कहीं भी इस तरह का बृक्ष नही है जिनकी छाया पूर्णतःशीतल और सुखद हो। अब तो बगीचों में केवल काॅटे बाले बेकार बिना काम बाले बृक्ष रह गये हैं। दुनिया में अच्छे लोगों की कमी हो गई है। अब केवल मूर्खों से संसार भर गया है।

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रहिमन बिगरी आदि की बनै न खरचे दाम
हरि बाढे आकाश लौं तउ बाबने नाम ।
जो काम आरम्भ में हीं खराब हो जाता है वह कितना भी पैसा खर्च किया जाये यानि प्रयास किया जाये वह संभल नही पाता है।विश्नु ने बौना बनकर राजा बलि से दान मांगा था-इसलिये उन्हें बामन हीं कहा जाता है।

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आदर घटे नरेस ढिग बसे रहे कछु नाॅहि
जो रहीम कोरिन मिले धिक जीवन जग माॅहि ।
यदि मान प्रतिश्ठा कम हो तो राजा के पास भी मत रहो।यदि तुम्हें करोड़ों रूपये मिले तब भी ऐसा अपमान का जीवन ब्यर्थ हैं।

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रहिमन निज मन की बिथा मन हीं राखो गोय
सुनि इठिलैहैं लेाग सब बाॅटि न लैहें कोय।
अपने मन के दुख को अपने मन में हीं रखना चाहिये। दूसरे लोग आपके दुख को सुनकर हॅसी मजाक करेंगें लेकिन कोई भी उस दुख को नही बाटेंगें। अपने दुख का मुकाबला स्वयं करना चाहिये।

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पुरूस पूजै देबरा तिय पूजै रघुनाथ
कहि रहीम दोउन बने पड़ो बैल के साथ ।
अशांत पति जादू मंतर आदि अनेक देवी देवताओं की पूजा करता है।सन्तोशी पत्नी केवल राम की पूजा करती है। पति पत्नी के बीच विचार और कर्म में संतुलन रहने से गृहस्थी की गाड़ी संतुलित ढंग से चलती है।

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रहिमन सुधि सब ते भली लगै जो बारंबार
बिछुरे मानुस फिर मिले यहै जान अवतार ।
बीती बातों की यादें हमें सुख दुख का एहसास कराती है। अपने बिछुड़ गये प्रिय लोगों से मुलाकात करा देती है।जानो ये यादें किसी दैवी अवतार से कम नही हैं।

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रहिमन रजनी ही भली पिय सों होय मिलाप
खरो दिबस केहि काम को रहिबो आपुहि आप ।
प्रेयसी को रात प्यारी लगती है कयोंकि रात्रि के अंधकार में प्रेमी से मिलन होता है। यह खरा सूखा दिन उसके किसी काम का नही है कयोंकि दिन में उसे अकेला हीं रहना पड़ता है।रात का समय मिलन का अवसर प्रदान करता है।

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रहिमन इक दिन वे रहे बीच न सोहत हार
वायु जो ऐसी बह गई बीचन परे पहार ।
कैसं अच्छे वे दिन थे जब प्रेमी प्रेमिका के बीच गले की हार भी नही सुहाती थी। अब कैसे बुरे दिन आ गये कि हमारे बीच समय की हवा ने पहाड़ खड़ा कर दिया है। अच्छे और बुरे दिनों की स्मृतियाॅ हीं शेश रह जाती है।

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काम न काहू आवई मोल रहीम न लेई
बाजू टूटे बाज को साहब चारा देई।
जब बाज के हाथ टूट जाते हैं तो उसे कोई महत्व नहीं देता। वह खाने के लिये मोहताज हो जाता है। तब केवल भगवान एसे सहारा देते हैं। मनुष्‍य को अच्छे दिन में घमंड नहीं करना चाहिये और बुरे दिनों का भी घ्यान रखना चाहिये।

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बड़े पेट के भरन को है रहीम दुख बाढि
यातें हाथी हहरि कै दयो दाॅत द्वै काढि ।
यदि किसी ब्यक्ति केा बड़े परिवार का भरण पोषण करना पड़ता हो तथा उसकी आय कम हो तो वह बहुत दिनों तक अपनी आर्थिक हालत को छिपाकर नही रख सकता है। हाथी अपना पेट नही भर पाने हेतु हीं अपना दांत दिखाता है।

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विरह रूप धन तम भये अवधि आस ईधोत
ज्यों रहीम भादों निसा चमकि जात खद्योत ।
रात्रि का घना अंधेरा वियोग के दुख को बढा देता है लेकिन भादो के रात्रि के गहन अंधकार में कभी कभी जुगनू चमक कर आशा की ज्योति जलाकर मन को प्रसन्न कर देता है।

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रहीम

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