वैष्णव जन तो तेने कहिये - सन्त नरसिंह मेहता


वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीड परायी जाणे रे।
पर दुःखे उपकार करे तो ये, मन अभिमान न आणे रे॥
वैष्णव जन तो तेने कहिये...

सकळ लोकमां सहुने वंदे, निंदा न करे केनी रे।
वाच काछ मन निश्चळ राखे, धन धन जननी तेनी रे॥
वैष्णव जन तो तेने कहिये...

समदृष्टि ने तृष्णा त्यागी, परस्त्री जेने मात रे।
जिह्वा थकी असत्य न बोले, परधन नव झाले हाथ रे॥
वैष्णव जन तो तेने कहिये...

मोह माया व्यापे नहि जेने, दृढ़ वैराग्य जेना मनमां रे।
रामनाम शुं ताळी रे लागी, सकळ तीरथ तेना तनमां रे॥
वैष्णव जन तो तेने कहिये...

वणलोभी ने कपटरहित छे, काम क्रोध निवार्या रे।
भणे नरसैयॊ तेनुं दरसन करतां, कुळ एकोतेर तार्या रे॥
वैष्णव जन तो तेने कहिये...

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लेखक : सन्त नरसिंह मेहता

वैष्णव जन तो तेने कहिये अत्यन्त लोकप्रिय भजन है जिसकी रचना १५वीं शताब्दी के सन्त नरसिंह मेहता ने की थी। यह गुजराती भाषा में है। महात्मा गांधी के नित्य की प्रार्थना में यह भजन भी सम्मिलित था। इस भजन में वैष्णव जनों के लिए उत्तम आदर्श और वृत्ति क्या हो, इसका वर्णन है।

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