अर्थ सहित रहीम के दोहे (दान के विषय में) - रहीम



देनहार कोई और है भेजत सो दिन रात
लोग भरम हम पै धरै याते नीचे नैन ।
देने वाला तो कोई और प्रभु है जो दिन रात हमें देने के लिये भेजता रहता है लेकिन लोगों को भ्रम है कि रहीम देता है। इसलिये रहीम आंखें नीचे कर लोगों को देता है । ईश्वर के दान पर रहीम अपना अधिकार नहीं मानते ।

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तबहीं लो जीबो भलो दीबो होय न धीम
जग में रहिबो कुचित गति उचित न होय रहीम ।
दानी को दान देने में आनन्द होता है। जीना तभी तक अच्छा लगता है जबतक दान देने की ताकत बनी रहे।बिना कुछ दान दिये रहीम को जीना अच्छा नही लगता।

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रहिमन दानि दरिद्रतर तउ जांचिवे योग
ज्यों सरितन सूखा परे कुआं खनावत लोग ।
यदि दानी ब्यक्ति अत्यधिक गरीब हो जाये तब भी वह याचना करने योग्य रहता है। इश्वर उसके पास कुछ न कुछ देने के योग्य रहने देते हैं। यदि नदी सूख जाता है तो लोग उसमें कुआ गडढा खोेदकर जल प्राप्त कर लेते हैं।

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तब हैं लो जीबो भलो दीबेा हेाय न धीम
जग में रहिबो कुचित गति उचित न होय रहीम ।
तभी तक जीना अच्छा है जब तक खूब दान दे सकें।जब दान देने की शक्ति खत्म हो जाये तो मर जाना हीं उचित है। बिना दान दिये संसार में जीना व्‍यर्थ है।

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रहीम

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