एक लड़की है जो मुझे, मुझसे ज़्यादा जानती है - अमनदीप सिंह

जो लफ्ज़ ज़ुबान तक नही आते मेरे, वो उन्हें भी पहचानती है

एक लड़की है जो मुझे, मुझसे ज़्यादा जानती है


सूझ बूझ मैं मुझसे आगे है

थम जाती है जब दुनिया भागे है

मशरूफ रहती है न जाने किस गांव में,

त्यौहारों में पायल पहनती है अपने पांव में


मेरी कहानियों को बड़े इत्मीनान से सुनती है

मेरे शब्दों पर पालकर रख कर, शायद वो भी ख्वाब बुनती है


कुछ छुपाता हूँ उससे तोह ना जाने कैसे जान जाती है

हर बार, हर बार मेरा मुखौटा हटा कर, मेरी सच्चाई पहचान जाती है


उसे रास्तों की परवाह नहीं, वो खुद को लहर मानती है

एक लड़की है जो मुझे, मुझसे ज़्यादा जानती है


मैं न सुनु तो गुस्से में आती है

मैं सुन लूं तो मुस्कुराती है

मैं उदास हूँ तो समझती है

मैं चुप हूँ तो सहलाती है


मैं ख़फ़ा हूँ तो मुझे मानती है

मेरी नाकामियों पर अपना हक़ जताती है

थोड़ी बेसुरी है, पर गा कर सुनाती है

मैं परेशान न करूं तो परेशान हो जाती है


इतनी तालिस्मनी होकर भी, वो मुझे अपना दोस्त मानती है

एक लड़की है जो मुझे, मुझसे ज़्यादा जानती है


हां, हां मैं उससे मज़ाक भी करता हूँ,

पर उसे खोने से भी डरता हूँ

उसकी नापसंद भी मुझे पसंद है

उसकी आवारगी में भी मेरी आज़ादी बंद है


मैं शब्द रखता हूँ वो जज़्बात उठाती है

मेरे कोरे कागज़ पर किसी कविता सी उत्तर जाती है

पर पूरी कविता में भी कहा खरी उतरती है

रोज़ रोज़ भला जन्नत से कहा ऐसी परी उतरती है


मैं उम्मीदन तोड़ दूं इसलिए मेरा हाथ थामती है

मुझसे ज़्यादा वो मेरे सपनों को हक़ीक़त मानती है

उसे रास्तों की परवाह नही खुद को लहर मानती है 

एक लड़की है जो मुझे, मुझसे ज़्यादा जानती है


अमनदीप सिंह

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