कभी किताबों में फूल रखना, कभी दरख़्तों पे नाम लिखना - हसन रिज़वी


कभी किताबों में फूल रखना, कभी दरख़्तों पे नाम लिखना

हमें भी याद आज तक वो नज़र से हर्फ़-ए-सलाम लिखना


वो चाँद चेहरे वो बहकी बातें सुलग़ते दिन थे महकती रातें

वो छोटे छोटे से काग़ज़ों पर मोहब्बतों के पयाम लिखना


गुलाब चेहरों से दिल लगाना वो चुपके चुपके नज़र मिलाना

वो आरज़ुओं के ख़ाब बुनना वो क़िस्सा-ए-ना-तमान लिखना


गई रुतों में 'हसन्' हमारा बस एक ही तो ये मशग़ला था

किसी के चेहरे को सुबहो कहना किसी की ज़ुल्फ़ों को शाम लिखना

- हसन रिज़वी -

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