अमर रागमाला - डॉ. कुमार विश्‍वास


अमर रागमाला 

कि तुम अमर राग माला बनो तो सही
एक पावन शिवाला बनो तो सही
लोग पढ़ लेंगे तुमसे सबक प्‍यार का
प्रीत की पाठशाला बनो तो सही 

कि लाख अंकुश सहे इस मृदुल काठ पर
बंदिशें कब निभीं मेरे जज्‍़बात पर
आपने पर मुझे बेवफा जब कहा
आंख नम हो गई आपकी बात पर

कि ताल को ताल की झंकृति तो मिले 
रूप को भाव की अनुकृति तो मिले
मैंन भी सपनों मेंं आने लगूं आपके
पर मुझे आपकी स्‍वीकृति तो मिले 

- डॉ. कुमार विश्‍वास -

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