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इस एक डर से ख़्वाब देखता नहीं - तहज़ीब हाफी

इक हवेली हूँ उस का दर भी हूँ - तहज़ीब हाफी

इक तेरा हिज्र दायमी है मुझे - तहज़ीब हाफी

अजीब ख़्वाब था उस के बदन में काई थी वो इक परी जो मुझे सब्ज़ करने आई थी - तहज़ीब हाफ़ी

चराग़ों को उछाला जा रहा है हवा पर रोब डाला जा रहा है - डॉ. राहत इन्दौरी

रात की धड़कन जब तक जारी रहती है - डॉ. राहत इन्दौरी

अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो जान थोड़ी है, ये सब धुआँ है कोई आसमान थोड़ी है - डॉ. राहत इन्दौरी

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मुन्तज़िर कब से तहय्युर है तेरी तक़रीर का - अहमद फ़राज़

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दिल भी बुझा हो शाम की परछाइयाँ भी हों - अहमद फ़राज़

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पयाम आए हैं उस यार-ए-बेवफ़ा के मुझे - अहमद फ़राज़

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अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ाएं हम - अहमद फ़राज़